वाह! आई ऍम फ्लेबरगास्टेड (flabbergasted)!! जी, बिलकुल, ये अटपटा ,हिंगलिश-नुमा वाक्य ही ज़हन में आया जब इन जूतों को देखा तो । चांदी के पत्रे पर नक्काशियों की बारीकियों में उलझे नक्काशकार को जब हमने पूछा क्या आप क्या बना रहे है …तो वह जल्दी से बोले, रुकिए हम आपको कुछ दिखाते है, और वह ले आये ये शानदार जूते, और बड़ी सादगी से बोले : ये कल ही किसी ने आर्डर पर बनवाये है …ये जनाब इतनी महीन नक्काशी के चांदी के जूते इतनी सादगी से दिखा रहे थे की मानो कह रहे हों कि अरे बस यूँ ही कुछ बनाया है 😉 ।
आपका पता नहीं, पर मैंने चांदी के जूते इसके पहले नहीं देखे थे ! और वह जगह, आस पास के लोग, उनके बात करने का तरीका किसी टाइम ट्रेवल से कम नहीं लगा मुझे।
यकीन मानिये, इन जूतों से डिज़ाइनर शोरूम में सजे ब्रांडेड जूतों का कोई मुक़ाबला ही नहीं क्यूंकि ऐसे कारीगर सिर्फ चीज़े बनाते नहीं बल्कि अपने ज़हन का कुछ हिस्सा भी उनमें डाल देते है I जव्वार हुसैन (नक्काशकार) ने हमें बताया की उनकी जड़े ईरानी हैं, और इनके पुरखों ने नवाबों के लिए शानदार नक्काशियां की है। आप ऐसे लोगो से बात करें तो आपको एहसास होगा कि जूतों पर की गयी नक्काशी ही नहीं, ऐसे लोग भी कुछ अलग ही होते है ,इनकी कला , इनकी इनकी रूह भी कुछ अलग ही होती है। अगर आप इनको कोई आर्डर दे तो ये आपको न जानते हुए भी सिर्फ विश्वास पर एडवांस तक नहीं मांगते,आज के दौर में तो ये अजीब ही है न।
ये वो लोग है जो इन शानदार कलाओं पर चढ़ती धूल को न सिर्फ हटा रहे हैं बल्कि आज भी इतिहास रच रहे है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी भी इस भव्यता को देख सके और अपनी जड़ो पे गर्व महसूस कर सके ,जैसे आज मुझे हो रहा है । हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए ऐसे कलाकारों का जिनकी कला और इंसानियत पर आज के दौर की मिलावट का रंग ज़रा भी नहीं चढ़ा है।